Labels

Wednesday 8 April 2020

लहरें



तुम
जैसे कोई शांत सागर
बर्फी़ले पर्वत का शिख़र
सुबह की सीधी रोशनी

मैं
जैसे कोई अधीर लहर
प्रबल अग्नि की तीव्र चिंगारी
रात की सुगबुगाहट का साया

इतने अलग पर जब मिले,
उलझनें आसान हो गईं|
पिछली सारी लकीरें मिल गईं,
धारणाओं की सभी दीवारें ढह गईं|

मेरी बरसती बूंँदों पर उड़ती धुंध हो तुम,
चंचल मन में चलते सफ़र का सीधा रास्ता हो तुम|

हर दिन मेरी कल्पनाओं की सैर करते,
शब्दों धुनों किस्से कहानियों शहरों में झाँकते हुए
आकाश के नीचे धरा पर मेरा तारामंडल हो तुम|

कल्पनाओं से वापस आकर,
दिन के अंत में मेरा घर हो तुम|

कभी लिखेंगे दो अलग लहरें किनारे पर कैसे मिलती हैं
तब तक हाथ थामे रोज़ थोड़ा पिघलते हुए चलते हैं|

No comments:

Post a Comment

Please leave an imprint of your thoughts as a response. It will be a pleasure to read from you. :)