मैं मुसाफ़िर
चला फ़िर से
इस शहर से उस शहर
कभी भटकता किसी सड़क पर
फ़िर मंज़िल पा जाता
कभी कोई अनजान मोहल्ला
घर अपना बन जाता
लेकर मन में
सपने सारे
उम्मीदें और यादें
कुछ भोले से
कुछ क़रीब से
मन के मेरे सपने
कुछ अनजाने
कुछ अपने से
उन लोगों के चेहरे
भूले बिसरे
फ़िर से मिलने की फ़रियादें
बांँधकर अपने मन की डोरी
फ़िर से चला घरौंदा
मैं मुसाफ़िर
चला फ़िर से
इस शहर से उस शहर
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