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Tuesday 7 April 2020

मोड़





जीवन मृत्यु के खेल में
आँंख मिचौली चल रही है,
मैं भोला मानुष अबूझ यहांँ
समय के फ़ेर को अनन्त मान,
बैठा हूंँ इस मोड़ पर
जब सफ़र अधूरा लगेगा,
फ़िर चल दूंँगा,
और थककर फ़िर मिलूँंगा
ऐसे ही किसी और मोड़ पर,
अबोध मन में ढेरों सवाल लिए,
फ़िर नई रात बुलाएगी,
फ़िर नई बाट निहारेगी,
मैं भोला मानुष ही सही,
जवाब तलाशने चलता रहूंँगा

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