Labels

Saturday 27 February 2016

मेरे शहर की ख़ुशबू



पर यह  मेरे शहर के बारे में नहीं है, उसके बारे में तो पहले ही मैंने बहुत कुछ लिखा है.  यह तो हर उस शहर के बारे में है जिसे हम सब कभी न कभी छोड़कर पंछियों की तरह अपना बसेरा कहीं और बसाने चले गए. चले तो गए पर क्या हमने सचमुच अपना शहर छोड़ा. हम में से कुछ को शायद कई साल हो गए होंगे उस शहर को देखे हुए और कुछ एक ऐसा पल ढूँढ रहे हैं जब सुकून से अपने शहर को देखें. कहीं गया ही नहीं वो हमारे अस्तित्व से. ग़ौर से सोचने पर आज यूँ ही याद आया कि मैं तो उसे अपने आस पास जी रही हूँ, शायद मुझे लगा ही नहीं कि मैं वहाँ से दूर कोई और बन चुकी हूँ. मैं तो अब भी वही हूँ, शायद इसीलिए इतनी दूर किसी और शहर में भी मुझे अपने शहर की परछाई दिखती है कभी कभी.                                                   
                                                 
आज सवेरे जब मैं उगते सूरज को देखने के लिए बाहर निकली, तो कहीं दूर से एक मधुर गूँज कानों में पड़ी. बरबस ही मुझे अपने शहर की ओर खींच ले गयी वह गूँज. मुझे आज भी याद है जब स्कूल के लिए जल्दी उठना होता था, और माँ जाने कितनी बार पुकारकर हार जाती थीं, तब ना  जाने कहाँ से किसी मंदिर में बजते भजन, कोई अखंड रामायण की गूँज या किसी मस्जिद की अज़ान से मेरी नींद गायब हो जाती थी. सिहरन वाली ठण्ड में जब मैं बाहर निकलती थी तब कुहासे में भी नरमी होती थी, कहीं से शायद किसी हवन कुण्ड का धुआँ गर्मी ला देता था, उस धुँए में भी एक अलग सी सुगंध थी, जो मानो अंतर्मन को पवित्र कर देती थी. सड़क के किनारे लगे पेड़ फूलों की खुशबू से मन को प्रफुल्लित कर देते थे और उस सुबह के सन्नाटे में भी कहीं कोई  सड़क साफ़ करते हुए दिख ही जाता था. आज जब भागती हुई गाड़ियों के बीच खुद को यहाँ की सड़कों पर पाती हूँ, तो वो सुकून वाली सुबह याद आ जाती है.           


                          


परीकथाओं की तरह लगता है अब वो समय जब शाम को दोस्तों के साथ किस्से कहानियाँ सुनते सुनाते ही हम ना जाने कितने देश घूम आते थे और खुद को झाँसी की रानी से कम  नहीं समझते थे. किसी पेड़ पर चढ़ना, कहीं रूठना मनाना, पर बस उस दुनिया के आगे कोई चिंता ना थी, सब कुछ पास ही तो था. सोचती हूँ अगर वो पेड़ इन्सान होता, तो शायद वो भी मुझे याद करता. अब कौन उसकी छाया में बैठकर अनगिनत संसार बनाता होगा. या क्या पता मेरी तरह कोई और अपने अंतर्मन में झाँकने वहाँ  जाता होगा. यहाँ कभी लोगों को मैं जब साथ में त्योहार मनाते देखती हूँ, तो याद आता है कैसे होली, दशहरे, नवरात्रि , दीवाली , क्रिसमस सब पड़ोसियों के साथ ही पूरे होते थे. और हमारे लिए तो छुट्टियों का समय स्वर्ग से कम  ना होता था.

                                                 
                                             

यहाँ जब शाम को घर आती हूँ, तब भूल नहीं पाती कैसे मेरी शामें नदी किनारे बस शान्त मन से लोगों को देखते हुए, उस सुरमयी वातावरण को ग्रहण करते हुए, किसी सड़क पर घूमते हुए, किसी मित्र से ज़िन्दगी के फलसफे कहते हुए, या बस किसी चाट वाले के ठेले पर सब से ऐसे मिलते हुए निकलती थीं जैसे कई साल हो गए हों मिले हुए, और अब तो सचमुच ना जाने कितने साल हो गए लगता है. वहाँ की हवा अब भी मानो छूते हुए गुज़रती है मुझे. उन किनारों पर, उन सड़कों पर जाने अब कौन चलता होगा. यहाँ तो शामें बंद कमरे में, किसी अनजान सड़क पर या किसी भीड़ भाड़ वाले चकाचौंध करते हुए मॉल में गुज़र जाती हैं, अनजाने चेहरों के बीच में.


      


माँ छुट्टियों में नानी, दादी, मौसी, बुआ के घर लेकर जाती थीं अब याद आता है, जब छुट्टियों का अर्थ होता है, बस अपने घर पहुँच जाऊँ एक बार फ़िर. जाने कितने अरसे हो गए वो सारे शहर भी तो मुझे याद करते होंगे ना. यहाँ  की छुट्टियाँ  तो बस अपनी ज़िन्दगी में सुकून के दो पल ढूंढने में निकल जाती हैं. मेरे कॉलेज के रास्ते पर अब जाने कौन गाड़ी भगाता होगा. जाने कौन कहता होगा "चल यार, कल मिलते हैं ". कल तो आता ही नहीं अब. हम शायद बड़े हो गए, और पीछे मुड़कर यादें ही तो हैं बस टोकरी में, जिन्हें  कभी टटोलकर ले आते हैं.                                           
रातों को जब अक्सर जागती हूँ, तो याद आता है, एक वो शहर है मेरा अपना, जहाँ  मासूमियत में कई सपने बुने थे, कुछ पीछे छूट गए, कुछ अधूरे रह गए, कुछ टूट गए, कुछ पूरे हो गए, अबोध मन के सपने. पर मेरे शहर की खुशबू तो साँसों में है, वही तो मुझे बनाये रखती है, मुझे एहसास देती है मेरे होने का, चाहे मैं कहीं भी रहूँ. आखिर ये शहर भी तो किसी का होगा, जो इसे छोड़कर गया होगा, तभी ये मुझे हर बात में मेरे शहर की याद दिलाता है. 

                                         
    





No comments:

Post a Comment

Please leave an imprint of your thoughts as a response. It will be a pleasure to read from you. :)